हिन्दू धर्म में गंगाजल की बड़ी महत्ता है. लोग जीवन भर हर शुभ काम के लिए तो इसका उपयोग करते ही हैं, मरने के बाद भी इसकी ज़रुरत पड़ती है. मरने से पूर्व व्यक्ति के मुंह में गंगाजल डाला जाता है और शव के अंतिम संस्कार के बाद भी अस्थियां गंगाजल में विसर्जित करने की परम्परा है. आखिर क्यों इतनी पवित्र है गंगा नदी और गंगाजल ?
हर नदी के जल की अपनी जैविक संरचना होती है, जिसमें वह खास तरह के लवण घुले होते हैं। जो कुछ किस्म के जीवाणुओं-कीटाणुओं को पनपने देते हैं कुछ को नहीं।
गंगाजल की कुछ विशेषताएं हैं, जिनमें से सबसे बड़ी यह कि यह जल कभी खराब नहीं होता । इस पानी की जैविक संरचना विशिष्ट है । वैज्ञानिकों का कहना है कि गंगा के पानी में ऐसे बैक्टीरिया हैं, जो पानी को सड़ाने वाले कीटाणुओं को पनपने नहीं देते और यह लंबे समय तक खराब नहीं होता।
वैज्ञानिक कारण - वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा नदी के जल मे बेक्टीरियोफेजेज नामक वायरस होता है । यह वायरस पानी सड़ाने वाले सूक्ष्मजीवों को खा जाते है । इसलिए गंगा नदी का जल अनेक वर्षो तक सड़ता नही है ।
दूसरा कारण गंगा के पानी में गंधक की प्रचुर मात्रा मौजूद रहती है, इसलिए भी यह खराब नहीं होता ।
वैज्ञानिक परीक्षणों से पता चला है कि गंगाजल से स्नान करने तथा गंगाजल को पीने से हैजा, प्लेग, मलेरिया तथा क्षय आदि रोगों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इस बात की पुष्टि के लिए एक बार डॉ. हैकिन्स, ब्रिटिश सरकार की ओर से गंगाजल से दूर होने वाले रोगों के परीक्षण के लिए आए थे। उन्होंने गंगाजल के परिक्षण के लिए गंगाजल में हैजे (कालरा) के कीटाणु डाले गए। हैजे के कीटाणु मात्र 6 घंटें में ही मर गए और जब उन कीटाणुओं को साधारण पानी में रखा गया तो वह जीवित होकर अपने असंख्य में बढ़ गया।
इंग्लैंड के मशहूर चिकित्सक सी.ई. नेल्सन ने जब गंगाजल पर रिसर्च की, तो उन्होंने कहा कि इस पानी में कीटाणु नहीं होते हैं ।
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